Bharatiya Rajniti Ke Do Aakhyan: 1920 Se 1950 Tak - 3 Angebote vergleichen
Bester Preis: € 3,89 (vom 06.03.2017)1
Bharatiya Rajniti Ke Do Aakhyan: 1920 Se 1950 Tak (2015)
EN PB NW
ISBN: 9788121620512 bzw. 8121620511, in Englisch, 512 Seiten, Hind Pocket Books, Taschenbuch, neu.
Lieferung aus: Indien, Usually dispatched within 24 hours.
Von Händler/Antiquariat, UBSPD.
भारत की स्वाधीनता की दृष्टि से 1920 से 1947 का समय अत्यंत सक्रिय, उत्तेजक और महत्वपूर्ण काल-खंड है। देश का जनमानस जहाँ गाँधी के साथ खुद को जोड़ रहा था, वहीं वामपंथी गाँधी, गाँधी-दर्शन और उनके मजबूत सिपहसालारों को ख़ारिज करने की कोशिश कर रहे थे। उधर 1920 के बाद से ही हिंदू संगठन ‘हिंदू राष्ट्र’ की परिकल्पना के साथ संगठित हो रहे थे। ये लोग हमेशा सरदार पटेल को अपने से जोड़ते रहे। गाँधी, नेहरू, सुभाष और पटेल के साथ वामपंथियों ने क्या किया? कांग्रेस के अंदर शामिल होकर कम्यूनिस्टों ने किस तरह कांग्रेस का इस्तेमाल किया? गांधी और सुभाष के बीच क्या विवाद था? और क्या विवाद था नेहरू और सुभाष के बीच? क्या सरदार पटेल कोई हिंदूवादी दृष्टि रखते थे? क्या उनकी इन संगठनों से कोई सहानुभूति थी? नेहरू से उनके मतभेद कैसे, क्यों और कितनी दूर तक गए? गाँधी की हत्या के बाद पटेल ने ‘हिंदू महासभा’ और ‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ’ के साथ क्या किया? अनेकानेक दस्तावेजों, उद्धरणों, भाषणों और परिशिष्ट की दुर्लभ सामग्री के साथ प्रख्यात कथाकार प्रियंवद ने इस पुस्तक में ऐसे तमाम सवालों के जवाब खोजने का श्रम किया है। कथाकार होने के नाते उनकी मोहक भाषा, रोचक शैली और विवेचनात्मक दृष्टि ने इसे पठनीय ही नहीं, संग्रहणीय भी बना दिया है। कहानीकार और उपन्यासकार होने के साथ-साथ प्रियंवद ‘अकार’ पत्रिका के संपादक भी हैं और ‘संगमन’ के संयोजक भी। उनकी कहानियों पर ‘अनवर’ और ‘खरगोश’ नामक फिल्में भी बनी हैं।, Paperback, संस्करण: First, लेबल: Hind Pocket Books, Hind Pocket Books, उत्पाद समूह: Book, प्रकाशित: 2015-03, स्टूडियो: Hind Pocket Books, बिक्री रैंक: 108250.
Von Händler/Antiquariat, UBSPD.
भारत की स्वाधीनता की दृष्टि से 1920 से 1947 का समय अत्यंत सक्रिय, उत्तेजक और महत्वपूर्ण काल-खंड है। देश का जनमानस जहाँ गाँधी के साथ खुद को जोड़ रहा था, वहीं वामपंथी गाँधी, गाँधी-दर्शन और उनके मजबूत सिपहसालारों को ख़ारिज करने की कोशिश कर रहे थे। उधर 1920 के बाद से ही हिंदू संगठन ‘हिंदू राष्ट्र’ की परिकल्पना के साथ संगठित हो रहे थे। ये लोग हमेशा सरदार पटेल को अपने से जोड़ते रहे। गाँधी, नेहरू, सुभाष और पटेल के साथ वामपंथियों ने क्या किया? कांग्रेस के अंदर शामिल होकर कम्यूनिस्टों ने किस तरह कांग्रेस का इस्तेमाल किया? गांधी और सुभाष के बीच क्या विवाद था? और क्या विवाद था नेहरू और सुभाष के बीच? क्या सरदार पटेल कोई हिंदूवादी दृष्टि रखते थे? क्या उनकी इन संगठनों से कोई सहानुभूति थी? नेहरू से उनके मतभेद कैसे, क्यों और कितनी दूर तक गए? गाँधी की हत्या के बाद पटेल ने ‘हिंदू महासभा’ और ‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ’ के साथ क्या किया? अनेकानेक दस्तावेजों, उद्धरणों, भाषणों और परिशिष्ट की दुर्लभ सामग्री के साथ प्रख्यात कथाकार प्रियंवद ने इस पुस्तक में ऐसे तमाम सवालों के जवाब खोजने का श्रम किया है। कथाकार होने के नाते उनकी मोहक भाषा, रोचक शैली और विवेचनात्मक दृष्टि ने इसे पठनीय ही नहीं, संग्रहणीय भी बना दिया है। कहानीकार और उपन्यासकार होने के साथ-साथ प्रियंवद ‘अकार’ पत्रिका के संपादक भी हैं और ‘संगमन’ के संयोजक भी। उनकी कहानियों पर ‘अनवर’ और ‘खरगोश’ नामक फिल्में भी बनी हैं।, Paperback, संस्करण: First, लेबल: Hind Pocket Books, Hind Pocket Books, उत्पाद समूह: Book, प्रकाशित: 2015-03, स्टूडियो: Hind Pocket Books, बिक्री रैंक: 108250.
Lade…