Rajasthani Khanna: Lajeej Vyanjan Rageen Chitron Sahit
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Rajasthani Khanna: Lajeej Vyanjan Rageen Chitron Sahit (2015)
EN PB NW
ISBN: 9788121620529 bzw. 812162052X, in Englisch, 95 Seiten, Hind Pocket Books, Taschenbuch, neu.
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Von Händler/Antiquariat, Yashmeh.
कहा जाता है कि आदमी के दिल तक उसके पेट से पहुँचा जाता है। मतलब यह कि अगर उसे स्वादिष्ट खाना मिल जाए, तो उसका दिल प्रसन्न हो जाता है। यों तो पूरे भारत में ही उत्तर से दक्षिण और पूर्व से पश्चिम तक खाद्य व्यंजनों का भरपूर वैविध्य देखने को मिलता है, पर राजस्थान के व्यंजनों की बात ही और है। वहाँ के दाल-बाटी, चूरमा, गट्टे अब पूरे भारत में प्रसिद्ध हैं। राजस्थान के रेगिस्तानी आँचल की सब्जी ‘कैर सांगरी’ के बारे में तो यहाँ तक कहा गया है कि ‘कैर कुमटिया सांगरी, काचर बोर मतीर। तीनूँ लोकाँ नह मिलै, तरसै देव अखीर’ यानी कैर, कुमटिया, सांगरी, काचर, बेर और मतीरे राजस्थान को छोड़कर तीनों लोकों में दुर्लभ हैं और इनके स्वाद के लिए देवता भी तरसते रहते हैं। ऐसे ही, देवताओं को भी तरसाने वाले राजस्थानी व्यंजनों की सरल-सुबोध रेसिपी इस पुस्तक में दिनेश चन्द्र शर्मा और मदालसा रानी शर्मा ने अपने निजी अनुभव से प्रस्तुत की हैं, जिन्हें आप सभी आसानी से बना और खा-खिला सकते हैं। जब हम राजस्थान की बात करते हैं तो जेहन में क्या आता है? सुंदर महल, ऊँट की राजसी सवारी, वीरगाथाएँ और किंवदंतियाँ, रोमांटिक कहानियाँ, जीवंत संस्कृति और आकर्षक विरासत! लेकिन क्या इन बातों में ही सिमट जाता है राजस्थान? जी नहीं, ‘राजाओं की भूमि’ इससे कहीं अधिक विस्तृत है और राजस्थानी खाने के उल्लेख के बिना तो राजस्थान का जिक्र ही अधूरा है। यहाँ के भोजन की जितनी तारीफ की जाए, कम है। यहाँ की दाल-बाटी, गट्टे, चूरमा, बाजरे की रोटी, लहसुन की चटनी वगैरा तो प्रसिद्ध हैं ही, आम, भुट्टे, मक्की, बेसन, चावल, गुड़, दूध-दही, गेहूँ आदि के व्यंजन भी बहुत अनुपम होते हैं। इस पुस्तक में इन चटखारेदार व्यंजनों को बनाने की विधियाँ बहुत सरल-सुबोध तरीके से बताई गई हैं, ताकि सभी लोग इन्हें आसानी से बना-खा सकें। इस पुस्तक के लेखकद्वय दिनेश चन्द्र शर्मा और मदालसा रानी शर्मा पति-पत्नी हैं और यद्यपि दिनेश जी दो विषयों में पीएच.डी. करके मेडिकल व डेंटल काॅलेज में सैंतालीस वर्ष तक पढ़ाते रहे हैं तथा मदालसा जी भी दिल्ली विश्वविद्यालय की स्नातक हैं, किंतु ये दोनों खाने-पीने के ही नहीं, खिलाने-पिलाने के भी इतने शौकीन हैं कि लंबे गृहस्थ-जीवन के दौरान इन्होंने खान-पान के संबंध में जो भी प्रयोग किए और जो भी अनुभव प्राप्त किए, उन्हें एकत्रा करते गए और अब सबके उपयोग के लिए उन्हें इस पुस्तक में प्रस्तुत कर रहे हैं। तो लीजिए, आप भी पढि़ए और उठाइए उनके अनुभव का फायदा! Paperback, संस्करण: First, लेबल: Hind Pocket Books, Hind Pocket Books, उत्पाद समूह: Book, प्रकाशित: 2015, स्टूडियो: Hind Pocket Books, बिक्री रैंक: 286978.
Von Händler/Antiquariat, Yashmeh.
कहा जाता है कि आदमी के दिल तक उसके पेट से पहुँचा जाता है। मतलब यह कि अगर उसे स्वादिष्ट खाना मिल जाए, तो उसका दिल प्रसन्न हो जाता है। यों तो पूरे भारत में ही उत्तर से दक्षिण और पूर्व से पश्चिम तक खाद्य व्यंजनों का भरपूर वैविध्य देखने को मिलता है, पर राजस्थान के व्यंजनों की बात ही और है। वहाँ के दाल-बाटी, चूरमा, गट्टे अब पूरे भारत में प्रसिद्ध हैं। राजस्थान के रेगिस्तानी आँचल की सब्जी ‘कैर सांगरी’ के बारे में तो यहाँ तक कहा गया है कि ‘कैर कुमटिया सांगरी, काचर बोर मतीर। तीनूँ लोकाँ नह मिलै, तरसै देव अखीर’ यानी कैर, कुमटिया, सांगरी, काचर, बेर और मतीरे राजस्थान को छोड़कर तीनों लोकों में दुर्लभ हैं और इनके स्वाद के लिए देवता भी तरसते रहते हैं। ऐसे ही, देवताओं को भी तरसाने वाले राजस्थानी व्यंजनों की सरल-सुबोध रेसिपी इस पुस्तक में दिनेश चन्द्र शर्मा और मदालसा रानी शर्मा ने अपने निजी अनुभव से प्रस्तुत की हैं, जिन्हें आप सभी आसानी से बना और खा-खिला सकते हैं। जब हम राजस्थान की बात करते हैं तो जेहन में क्या आता है? सुंदर महल, ऊँट की राजसी सवारी, वीरगाथाएँ और किंवदंतियाँ, रोमांटिक कहानियाँ, जीवंत संस्कृति और आकर्षक विरासत! लेकिन क्या इन बातों में ही सिमट जाता है राजस्थान? जी नहीं, ‘राजाओं की भूमि’ इससे कहीं अधिक विस्तृत है और राजस्थानी खाने के उल्लेख के बिना तो राजस्थान का जिक्र ही अधूरा है। यहाँ के भोजन की जितनी तारीफ की जाए, कम है। यहाँ की दाल-बाटी, गट्टे, चूरमा, बाजरे की रोटी, लहसुन की चटनी वगैरा तो प्रसिद्ध हैं ही, आम, भुट्टे, मक्की, बेसन, चावल, गुड़, दूध-दही, गेहूँ आदि के व्यंजन भी बहुत अनुपम होते हैं। इस पुस्तक में इन चटखारेदार व्यंजनों को बनाने की विधियाँ बहुत सरल-सुबोध तरीके से बताई गई हैं, ताकि सभी लोग इन्हें आसानी से बना-खा सकें। इस पुस्तक के लेखकद्वय दिनेश चन्द्र शर्मा और मदालसा रानी शर्मा पति-पत्नी हैं और यद्यपि दिनेश जी दो विषयों में पीएच.डी. करके मेडिकल व डेंटल काॅलेज में सैंतालीस वर्ष तक पढ़ाते रहे हैं तथा मदालसा जी भी दिल्ली विश्वविद्यालय की स्नातक हैं, किंतु ये दोनों खाने-पीने के ही नहीं, खिलाने-पिलाने के भी इतने शौकीन हैं कि लंबे गृहस्थ-जीवन के दौरान इन्होंने खान-पान के संबंध में जो भी प्रयोग किए और जो भी अनुभव प्राप्त किए, उन्हें एकत्रा करते गए और अब सबके उपयोग के लिए उन्हें इस पुस्तक में प्रस्तुत कर रहे हैं। तो लीजिए, आप भी पढि़ए और उठाइए उनके अनुभव का फायदा! Paperback, संस्करण: First, लेबल: Hind Pocket Books, Hind Pocket Books, उत्पाद समूह: Book, प्रकाशित: 2015, स्टूडियो: Hind Pocket Books, बिक्री रैंक: 286978.
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